गुरु ही ज्ञान है , गुरु ही धर्म है,
समाज का उत्थान ही गुरु का कर्म है !
गुरु ही पाताल है, गुरु आकाश है ,
संसार के कल्याण से उसे कहाँ अवकाश है !
गुरु ही अचल है , गुरु अडिग है ,
गुरु का छात्र प्रेम ही स्वर्ण मृग है !
गुरु ही मारुत है, गुरु सारंग है,
गुरु से ही वसुंधरा की यह उमंग है !
गुरु ही पावक है , गुरु गहन है,
गुरु ही छात्र के व्यक्तित्व का कुंदन है !
गुरु ही नीर है, गुरु पारिजात है ,
गुरु वंदना में एक विशेष ही बात है !
गुरु ही असीम है, गुरु अनंत है,
गुरु का स्थान ब्रह्मांड में उत्तम है !!
गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेवो महेश्वर : !
गुरु: साक्षत्पर्ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवेनम: !!
समाज का उत्थान ही गुरु का कर्म है !
गुरु ही पाताल है, गुरु आकाश है ,
संसार के कल्याण से उसे कहाँ अवकाश है !
गुरु ही अचल है , गुरु अडिग है ,
गुरु का छात्र प्रेम ही स्वर्ण मृग है !
गुरु ही मारुत है, गुरु सारंग है,
गुरु से ही वसुंधरा की यह उमंग है !
गुरु ही पावक है , गुरु गहन है,
गुरु ही छात्र के व्यक्तित्व का कुंदन है !
गुरु ही नीर है, गुरु पारिजात है ,
गुरु वंदना में एक विशेष ही बात है !
गुरु ही असीम है, गुरु अनंत है,
गुरु का स्थान ब्रह्मांड में उत्तम है !!
गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेवो महेश्वर : !
गुरु: साक्षत्पर्ब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवेनम: !!